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" फूल नही मैं लेखक हूं "

04/08/2017 05:23

काया मे सांसे बोल रही
मेरे मन की मधुर सुमिरिनो मे,
मन की हिंन्डोले डोल रहीं
और शनै –शनै मेरे कानो मे
कुछ करने को है बोल रहीं
ऐसे पावन विचरण मे तुम .
कोई ना दखलंन्दाज करो.
अपने मधुर प्रेम की नैया को तुम अपने ही पास रखो.
मेरे मन की भाव भन्गिमा को
मुझे यूं ही तुम लिखने दो …
फूल नही मैं लेखक हू मुझे लेखक ही तुम रहने दो……
मैं कदमो में इक चाल लिये .…
जीवन के हर मोडो पर
खाली हांथो मे ढाल लिये…
और चिर अनंत तक चलने वाली सत्यमेव की राह
लिये …
अपने लक्ष्यों को देखू मैं
इस चाहत की लौ– मिशाल लिये …
मैं प्यासा हू जिस दरिया का |
मुझे खोज ज्ञान की करने दो ……
फूल नही मैं लेखक हू मुझे लेखक ही तुम रहने दो……
मेरे इस जीवन के ध्ये य को
सत्य हो या सत्यमेव को
मैं तो हू अहिंसा का पुजारी
मेरे इस पूजा के श्रेय को…
अब तुम भी खुद जलपान करो…
कविता रूपी जो– कुछ शब्द लिखे हैं .
उनका कुछ गुणगान करो…
मैं स्वप्रेम की आस लिये …
मुझे आश नही है मिलने की
इसलिये मिलन की त्याग किये …
मैं पुन: गुजारिश करता हूं |
जो दिखता हूं – वो लिखता हूं …
मेरे इस काव्य प्रेम को तुम सतत प्रवाहित बहने दो……
फूल नही मैं लेखक हूं मुझे लेखक ही तुम रहने दो……

By: चन्द्रहास पांडेय (कवि /रचनाकार)

नर हो ना निराश करो मन को

12/03/2015 16:05
अगर सफलता मंजिल है, तो असफलता वह रास्ता है जो हमें इस मंजिल तक पहुँचाता है। यही वजह है कि महापुरुषों ने इन दोनों में ही आशा की किरण देखी है। छोटी-छोटी असफलताएँ ही आगे चलकर बड़ी सफलता का आधार बनती हैं।

आज के कुछ नादान और कमजोर लोग भले ही छोटी-मोटी नाकामयाबी से भी निराश होकर जीवन से हार मान लेते हों, लेकिन जुझारू लोग अपनी किश्ती इस तूफान में भी पार लगाने में कामयाब हो जाते हैं।

यदि असफलता का एक मात्र 'उपाय' आत्महत्या ही होता, तो दुनिया में सभी सफल व्यक्ति खत्म हो चुके होते, क्योंकि आज के सभी सफल व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी असफल जरूर हुए हैं। यहाँ तक कि भगवान ने भी मनुष्य रूप में जन्म लेकर तरह-तरह के कष्ट उठाए और कई 'असफलताएँ' भी झेलीं।

दुनिया में ऐसे न जाने कितने ही लोग हैं जो किसी एक क्षेत्र में अच्छा काम नहीं कर सके और लगातार असफल होते रहे, लेकिन निरंतर प्रयास व मेहनत के बाद जब उन्हें कामयाबी मिली, तो वे पूरे संसार के सामने एक मिसाल साबित हुए। जीवन में हारना भी जरूरी है।

हार से ही जीतने का रास्ता मिलता है जिस पर चलकर आप हमेशा जीतते रह सकते हैं, क्योंकि एक बार आप हार का कड़वा स्वाद भी चख चुके होते हैं। असफलता के बाद सफलता का मौका हमेशा आपके पास होता है, लेकिन निराश होकर आत्महंता बनने वाले लोग अपने सभी मौके खो देते हैं। किसी भी काम में दोबारा से मेहनत करके सफलता प्राप्त की जा सकती है, लेकिन जान देने के बाद भूल सुधार का अवसर ही नहीं रहता।

आत्महत्या सफलता के सारे रास्ते बंद कर देती है। इसलिए स्वयं को एक और मौका देने का रास्ता हमेशा आपके पास होना चाहिए। किसी भी संकट में धैर्य ही काम आता है। परिस्थितियों से घबराकर पीठ दिखाने वालों से तो भगवान भी किनारा कर लेता है क्योंकि 'वह' भी हमारे अंदर ही है। सफलता उनका ही साथ देती है, जो हर पल आशा की डोर थामे रहते हैं।

सामने चाहे कितना ही अंधेरा क्यों न हो, पर अगर आप रोशनी की आस में चलते रहेंगे, तो उस तक पहुँच ही जाएँगे। जीवन में किसी परीक्षा में फेल होने का यह मतलब नहीं है कि पूरा जीवन ही बेकार हो गया है। एक बार असफल हो जाने के बाद दोगुने उत्साह से फिर से पूरी तैयारी के साथ जुट जाएँ और अगली-पिछली सभी कमियों को खत्म कर दें।
नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रह के निज नाम करो।

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो!
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को।
सँभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला!
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना।
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को।।
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ!
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठ के अमरत्व विधान करो।
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को।।
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे।
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को।।